Thursday 23 November 2017

आज चाहत है क्यों न खुद से ही गुफ़्तगू की जाए।
खुद से खुद की तारीफ ही कर ली जाए।।
थोड़े तानो को भी इसमें जगह दे दी जाए।
खुद से ही क्यों न थोड़ी शरारत कर ली जाए।।
यूँ तो कई हें बतियाने को इंसा दुनिया में।
फिर भी खुद से बतियाने की कोशिश कर ली जाए।।
यूँ तो वक्त बहुत हैं दुसरो संग बिताने को।
पर आज थोड़ी अठखेलिया खुद से कर ली जाए।।
जमाना पागल घोषित कर देगा खुद से बोलने के लिए।
तो जरा ये पागलपंती भी आज कर ली जाए।।
मुक्त गगन के तले थोड़ी सी मस्ती ही कर ली जाए।
जहां को भूलकर थोड़ी ख़ुदपरस्ती ही कर ली जाए।।
क्यों न खुद से आज थोड़ी सी खिलाफत की जाए।
आज चाहत है क्यों न खुद से ही गुफ़्तगू की जाए।
---- आनंद सगवालिया

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