Sunday 1 October 2017

आज ख़ुश हो गई रूह यह जानकर मेरे कदमो ने क्या राह चुनी हैं।
कतरा कतरा झूम उठा हैं मेरे जज्बातों ने क्या चाह बुनी हैं।।
सोचा ना था के यूं मुक्कममल होंगे मेरे इरादें।
कैसे होंगे पूरे जो ज़िन्दगी से किए वादे।।
इक़रार तो हर कदम पर बराबर किया ख्वाहिशों का अपनी।
पर ख्वाहिशों को पर देना कहा आसान था।।
इंतज़ार भी बेइंतेहा था मुराद पूरी होने का।
पर मुरादों के लिए भटकना कहा आसान था।।
चलता रहा मुद्दतों से लड़ते हुए।
इस लड़ाई का ताना बाना बुनना कहा आसान था।।
चलता गया पता हें कोन अपने इस सफर में।
वार्ना सगों को अपना ना मानना भी कहा आसान था।।
आज सुकून ने छीन लिया मेरे दिल का दर्द।
वरना बिना छाले पड़े चलना भी कहा आसान था।।
आज जब पूरा हुआ ये सफर तो रह गयी हैं बस यादे।
आज अपनी ही मस्ती में मगन हें मेरे इरादें।।
कतरा कतरा झूम उठा हैं मेरे जज्बातों ने क्या चाह बुनी हैं।
आज ख़ुश हो गई रूह यह जानकर मेरे कदमो ने क्या राह चुनी हैं।

---- आनंद सगवालिया