Tuesday 28 November 2017

होसलो में दम हो तो मंजिल चलकर पास आ जाती है
इरादों की बुलंदिया परवरदीकार को भी झुका जाती हैं
सच से ज्यादा झूठ को चिल्लाने पर आवाज आती है
लेकिन ये बात भी सच है यारो
झूठ की खाल भी सच्चाई ही उधेड़कर लाती हैं।
रास्तो की परख हमेशा चलने वालों को ही आती हैं
किसी राह पर तो पैरो को पता भी नही लगता
किसी राह पर पैरो में छालो की बयार आ जाती हैं
सही राह से ज्यादा तो छली राह मिलती हैं यहा
लेकिन ये बात भी सच हैं यारो
मुक्कममल रास्तो को ढूंढने में ही तकलीफ आती हैं।
गुजरता हैं वक्त भी बड़े अदब से साहेब
किसी का अच्छा हो तो क्या बात हैं वरना
किसी की तो तकलीफ भी देखि नहीं जाती हैं
रिस्तो का भंवर भी कितना अजीब हैं यहां
अपनों के होने का अहसास तो सब देते हैं यहा
लेकिन ये बात भी सच हैं यारो
रिश्तो की परख भी बुरे वक्त में ही हो पाती हैं।
मुद्दे लाख हैं बयां करने को पास में
किसी मुद्दे से किसी की फिक्र कम हो जाती हैं
तो किसी से कीड़ी की नींद ख़तम हो जाती हैं
बड़ी मुद्दतों के बाद ये मुद्दे की बात की जाती हैं
लेकिन ये बात भी सच हैं यारो
मुद्दई के मुद्दे की बात भी खुद पर बीतने के बाद ही समझ आती हैं।

----आनंद सगवालिया
में यह पंक्तिया श्री हरिवंशराय बच्चन साहब को समर्पित करता हूँ।

Thursday 23 November 2017

आज चाहत है क्यों न खुद से ही गुफ़्तगू की जाए।
खुद से खुद की तारीफ ही कर ली जाए।।
थोड़े तानो को भी इसमें जगह दे दी जाए।
खुद से ही क्यों न थोड़ी शरारत कर ली जाए।।
यूँ तो कई हें बतियाने को इंसा दुनिया में।
फिर भी खुद से बतियाने की कोशिश कर ली जाए।।
यूँ तो वक्त बहुत हैं दुसरो संग बिताने को।
पर आज थोड़ी अठखेलिया खुद से कर ली जाए।।
जमाना पागल घोषित कर देगा खुद से बोलने के लिए।
तो जरा ये पागलपंती भी आज कर ली जाए।।
मुक्त गगन के तले थोड़ी सी मस्ती ही कर ली जाए।
जहां को भूलकर थोड़ी ख़ुदपरस्ती ही कर ली जाए।।
क्यों न खुद से आज थोड़ी सी खिलाफत की जाए।
आज चाहत है क्यों न खुद से ही गुफ़्तगू की जाए।
---- आनंद सगवालिया