Sunday 19 August 2018


हरा भरा बागियों से मिलकर,
बात करू प्रकृति से खिलकर।
निश्चल जल को देह में भरकर,
पहाड़ों को धारण करकर।।

आज मेरी हालत को देखकर,
दुख को भी दुख हो रहा हैं।
काल का विकराल रूप देख,
प्राणी हर एक रो रहा हैं।।

बांध भरे मानव सेवा को,
आज वही बन गए कब्रगाह।
क्या नदी और क्या कोई नाला,
जल बन गया एक ज्वाला।।

देता दुनिया को जो मसाले,
आज वही वंचित हैं उनसे।
सुंदरता धरती की पाले,
आज वही देखे दुखी मनसे।।

हसी ठिठोली फिर से करने को,
देश खुदा का फिर बनने को।
अजर अमर भारत के चरणों में,
शोभामयी पुष्पो सा खिलने को।।

लड़के काल से कल फिर,
खड़ा होने की जिद ठान ली।
देख हार को खुद के पीछे,
जीतने कि फिर राह जान ली।।

वहीं बगिया होगी कल फिर,
वहीं भव्यता होगी चल फिर।
क्रूर हालातो से जीतकर,
अद्भुत दृश्य बनाऊंगा।।

सुख को भी सुख देने की,
फिर क्षमता अपनी दिखाऊंगा।
यश गाथा गौरव के अपनी,
के इक बार फिर गाऊंगा।।

हा मैं केरल हूं,
हा मैं केरल हूं।
फिर सुंदर बन जाऊंगा,
फिर खुशीया बरसाऊंगा।।
-- आनंद सगवालिया
।।बाढ़ पीड़ित केरल को समर्पित चंद पंक्तियां।।

Friday 17 August 2018


स्थिर बुद्धि दृढ़ इरादा
देश सेवा का लेकर इरादा
अचंभित करती वाकपटुता
न पाली किसी से कटुता
लक्ष्य राष्ट्र सर्वोत्तम अपना
देखा था एक उत्तम सपना
न परवाह सरकार की थी
इच्छा राष्ट्र के आकार की थी
पतित पावन मन था सच्चा
बेबाक जैसे हो कोई बच्चा
जो कल तक रहता न चुप
आज शांत हैं जैसे अंधेरा घुप
घोर अभाव छोड़ कर जग में
बांध कोई डोर को पग में
चला गया जो महामानव
कहता था मृत्यु हैं अटल
लौट आना फिर इस राष्ट्र में
बनके भारत के नव निर्माता
होकर भी वैचारिक मतभेद
न हुए कभी किसी से मनभेद
डाले सबके मन में डेरा
नमन तुम्हारे चरणों में मेरा
महान कवि अटल जी को भावभीनी श्रद्धांजलि
-- आनंद सगवालिया

Tuesday 14 August 2018


मां भारती का हर पूत आजादी का परवाना था
न लाठी की थी परवाह ना जान की थी फिकर
वो भी क्या दिन थे जब वतन पर मिटने को बच्चा बच्चा दीवाना था
धर्म जुदा और जात जुदा पर न थे उनके हाथ जुदा
गांधी का साथी मौलाना और अशफ़ाक भगत का याराना
तौर तरीके न मिले पर सोच मिली थी सबकी
अंग्रेजो की लालकर वो कहते थे गीदड़ भभकी
न मौत का डर था दिल में न खौफ कोई था आंखो में
जोश बदन में न भी हो तो जोश भरा था इरादों में
नेहरू के कहने पर बच्चा बच्चा जुट जाता था
आजाद नाम रखकर कोई वतन पर मस्ती में लूट जाता था
शर्म भरी है आज आंखो में कैसे तुमको ये बतलाए
कीमत आजादी की कैसे इन मक्कारो को समझाए
आज न सुधरे तो कल फिर कोई गुलाम बनाएगा
फिर गुलाम हुए तो न कोई भगत सिंह न गांधी अब आएगा
राजनीति न करो नाम पर उन शूर वीरो के
पूज्यनीय है एक एक अब चरण छुओ भारत के हीरो के

स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर तमाम भारतवासियों को बधाई।
मैं कृतज्ञ राष्ट्र का नागरिक तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन करता हूं।
न मिला आजादी को कुर्बान होने का सुख हमें
किस्मत उन परवानों की और ही थी।
इंकलाब ज़िंदाबाद
हिन्दुस्तान जिंदाबाद
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय
आनंद सगवालिया