स्थिर बुद्धि दृढ़ इरादा
देश सेवा का लेकर इरादा
अचंभित करती वाकपटुता
न पाली किसी से कटुता
लक्ष्य राष्ट्र सर्वोत्तम अपना
देखा था एक उत्तम सपना
न परवाह सरकार की थी
इच्छा राष्ट्र के आकार की थी
पतित पावन मन था सच्चा
बेबाक जैसे हो कोई बच्चा
जो कल तक रहता न चुप
आज शांत हैं जैसे अंधेरा घुप
घोर अभाव छोड़ कर जग में
बांध कोई डोर को पग में
चला गया जो महामानव
कहता था मृत्यु हैं अटल
लौट आना फिर इस राष्ट्र में
बनके भारत के नव निर्माता
होकर भी वैचारिक मतभेद
न हुए कभी किसी से मनभेद
डाले सबके मन में डेरा
नमन तुम्हारे चरणों में मेरा
देश सेवा का लेकर इरादा
अचंभित करती वाकपटुता
न पाली किसी से कटुता
लक्ष्य राष्ट्र सर्वोत्तम अपना
देखा था एक उत्तम सपना
न परवाह सरकार की थी
इच्छा राष्ट्र के आकार की थी
पतित पावन मन था सच्चा
बेबाक जैसे हो कोई बच्चा
जो कल तक रहता न चुप
आज शांत हैं जैसे अंधेरा घुप
घोर अभाव छोड़ कर जग में
बांध कोई डोर को पग में
चला गया जो महामानव
कहता था मृत्यु हैं अटल
लौट आना फिर इस राष्ट्र में
बनके भारत के नव निर्माता
होकर भी वैचारिक मतभेद
न हुए कभी किसी से मनभेद
डाले सबके मन में डेरा
नमन तुम्हारे चरणों में मेरा
महान कवि अटल जी को भावभीनी श्रद्धांजलि
-- आनंद सगवालिया
-- आनंद सगवालिया
No comments:
Post a Comment