Saturday 23 June 2018

हुए है काफी रोज आराम दिए कलम को
सोच रहा फिर कुछ खुद जुबानी लिख दू।
लिख दू किस्से अनछुए से
या कोई अनोखी कहानी लिख दू।
बहुत गौर किया दूजो पर
अब थोड़ी सी मनमानी लिख दू।
आयाम लिख दू धरती के
या खयाल आसमानी लिख दू।
चंचल चित की काया लिख दू
या बैरागी माया लिख दू।
लिखूं नया नया सा कुछ
या फिर कोई बात पुरानी लिख दू।
लिख दू चर्चे बचपन के
या अल्हड़ जवानी लिख दू।
अलाप लिख दू अपना
या फिर राग पराया लिख दू।
सवार हो खुद की धुन पर
गाथा कुछ स्वाभिमानी लिख दू।
झरने का निर्मल पानी लिख दू
या चेहरा किसी का नूरानी लिख दू।
बाते लिख दू बेतुकी कुछ
या कुछ बदजुबानी लिख दू।
लिखूं मुहब्बत के अफसाने
या नफरत के फसाने लिख दू।
लिख दू चर्चा चाय की
या मदिरा के अफसाने लिख दू।
लिख दू खुद को आज में
या खुदा को मेरे रूहानी लिख दू।
बुजदिली लिख दू आज कोई
या जिंदादिल कोई भवानी लिख दू।
लिख दू महीन संगमरमर को
या पत्थर कोई चट्टानी लिख दू।
लिखूं हल्की बहती हवा
या नदियों का बहता पानी लिख दू।
नज़रे लिख दू जादूगरी
या नजारे कुछ रूहानी लिख दू।
हुए है काफी रोज आराम दिए कलम को
सोच रहा फिर कुछ खुद जुबानी लिख दू।

-- आनंद सगवालिया