Saturday 29 December 2018

जो अपने लहू से देश को तृप्त कर जाता हैं
जो पसीने से लथपथ खेतो में फसल उगाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

कर्म को धर्म मानकर जो बड़ता चला जाता हैं
पहाड़ दुखो का हसकर जो वहन कर जाता है
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

आतंकी अधर्मी को तू माफ कर जाता हैं
पर धर्म को पालने वाला साफ यहां हो जाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

ढोंगी भ्रष्टाचारी को भी मस्त मजा करवाता हैं
न हो अत्याचारी तो तू उसको बड़ा रुलाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

देश धर्म से नाता जिनका उनको सबक सिखाता हैं
पापी जितना हो उतना जग में वह हसता चला जाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

एक सैनिक देश पर सर्वस्व कुर्बान कर जाता हैं
किसान भरने को पेट सबके खुद लूटता चला जाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

भारत भूमि के जवानों को क्यों इतना तड़पाता हैं
हिन्द के किसानों को क्यों दुखदर्द पहुंचाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

-- आनंद सगवालिया

Tuesday 25 December 2018

छूटा बहुत जिंदगी की दौड़ में
टूटा बहुत फालतू हौड़ में
चलता रहा अपना गम छुपाए
सर्द रातों में बहाने बनाए
दर्द बताना चाहते थे
कभी किसी को बता न पाए
खुशियां जतानी चाही
कभी किसी को जता न पाए
रूठकर बैठे कभी
कभी मस्ती में ठहाके लगाए
मनमारकर रह गए कहीं
तो कहीं जिंदगी के मज़े उड़ाए
रफ़्तार पकड़ी कभी
कभी थामकर कुछ पल बिताए
बुरा न माना कभी किसी गलत बात का
एहसास दर्द का हरदम ज्ञात था
आज कुछ ज्यादा छूटा
सपना फिर आंखो में टूटा
काश यह दिन फिर एक बार आए
फिर मुझको यह याद दिलाए
चलना मेरा काम है
यही तो जिंदगी का नाम है

-- आनंद सगवालिया