Tuesday, 25 December 2018

छूटा बहुत जिंदगी की दौड़ में
टूटा बहुत फालतू हौड़ में
चलता रहा अपना गम छुपाए
सर्द रातों में बहाने बनाए
दर्द बताना चाहते थे
कभी किसी को बता न पाए
खुशियां जतानी चाही
कभी किसी को जता न पाए
रूठकर बैठे कभी
कभी मस्ती में ठहाके लगाए
मनमारकर रह गए कहीं
तो कहीं जिंदगी के मज़े उड़ाए
रफ़्तार पकड़ी कभी
कभी थामकर कुछ पल बिताए
बुरा न माना कभी किसी गलत बात का
एहसास दर्द का हरदम ज्ञात था
आज कुछ ज्यादा छूटा
सपना फिर आंखो में टूटा
काश यह दिन फिर एक बार आए
फिर मुझको यह याद दिलाए
चलना मेरा काम है
यही तो जिंदगी का नाम है

-- आनंद सगवालिया

No comments:

Post a Comment