Saturday 18 May 2019

एक नूर को देखा मैने
एक हूर को देखा मैने
मेरे शहर की गलियों में
कोहिनूर को देखा मैने
बिल्कुल ख्वाबों सी लगती
मेरी आंखो में जगती
आंखे नशीली चाल शराबी
बाते बहकी अंदाज नवाबी
कहती मुहब्बत करम मेरा
बांधे क्यों फिर ये धरम मेरा
पतझड़ को ढलते देखा मैने
पत्तों को पलते देखा मैने
दरमियान लफ्जो की आहट के
शांत चितवन को देखा मैने
खिलखिलाते बागियों में फूलों के
प्रसन्न मन को देखा मैने
खुद की आंखो के पाटों से
मदमस्त फितूर को देखा मैने
एक नूर को देखा मैने
एक हूर को देखा मैने
मेरे शहर की गलियों में
कोहिनूर को देखा मैने

-- आनंद सगवालिया