Monday, 23 July 2018


न मुकम्मल हो मोहब्ब्त तो क्या ग़म हैं
आरज़ू न तब काम थी न अब कम हैं
ख्वाहिशें तब भी बेतहाशा थी
ख्वाहिशें अब भी बेतहाशा हैं

चाहत इस कदर हावी दिलों दिमाग पर हैं
नासमझ इकरार तब भी जरा सा था
नासमझ इकरार अब भी जरा सा हैं
बेपनाह इश्क में तब भी निराशा थी
बेपनाह इश्क में अब भी निराशा हैं

नज़रों से गुफ्तगू का आलम तो देखिए
लबो का कारवां तब भी बेदम था
लबो का कारवां अब भी बेदम हैं
जुनून पर अंधेरा तब भी निशा सा था
जुनून पर अंधेरा अब भी निशा सा हैं

एक नज़र फेराइएगा चेहरे पर इश्कबाजो के
हया की लाली न तब कम थी न अब कम हैं
मुस्कुराहट न बेजान तब थी
मुस्कुराहट न बेजान अब हैं
-- आनंद सगवालिया

Friday, 20 July 2018


नफरतों के दर्मिया मोहब्बत उगाने निकला हूं
खुदा की हसरतों सी इंसानियत निभाने निकला हूं।।

झूठ के सौदागरों को मै भगाने निकला हूं
जग को सच का प्रतिबिंब दिखाने निकला हूं।।

नाकामियों के दलदल से मैं बाहर आने निकला हूं
कामयाबी की नई मिसाल आज गाने निकला हूं।।

पथ की कठिनाई को ठेंगा दिखाने निकला हूं
आज सीधा ठानकर मंजिल को पाने निकला हूं।।

बेवक्त की परेशानियों को मैं मिटाने निकला हूं
मुश्किलों से आज मै पार पाने निकला हूं।।

परछाई से दूजो की मै बाहर आने निकला हूं
परछाई आज खुद की मै बनाने निकला हूं।।

प्यार से दुनिया को मै सजाने निकला हूं
जीना मिलके जग को सीखने निकला हूं।।

रूठी हसरतों को मनाने निकला हूं
जिंदगी के गीत को खुल के गाने निकला हूं।।

नफरतों के दर्मिया मोहब्बत उगाने निकला हूं
खुदा की हसरतों सी इंसानियत निभाने निकला
--आनंद सगवालिया