Monday, 23 July 2018


न मुकम्मल हो मोहब्ब्त तो क्या ग़म हैं
आरज़ू न तब काम थी न अब कम हैं
ख्वाहिशें तब भी बेतहाशा थी
ख्वाहिशें अब भी बेतहाशा हैं

चाहत इस कदर हावी दिलों दिमाग पर हैं
नासमझ इकरार तब भी जरा सा था
नासमझ इकरार अब भी जरा सा हैं
बेपनाह इश्क में तब भी निराशा थी
बेपनाह इश्क में अब भी निराशा हैं

नज़रों से गुफ्तगू का आलम तो देखिए
लबो का कारवां तब भी बेदम था
लबो का कारवां अब भी बेदम हैं
जुनून पर अंधेरा तब भी निशा सा था
जुनून पर अंधेरा अब भी निशा सा हैं

एक नज़र फेराइएगा चेहरे पर इश्कबाजो के
हया की लाली न तब कम थी न अब कम हैं
मुस्कुराहट न बेजान तब थी
मुस्कुराहट न बेजान अब हैं
-- आनंद सगवालिया

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