Friday, 20 July 2018


नफरतों के दर्मिया मोहब्बत उगाने निकला हूं
खुदा की हसरतों सी इंसानियत निभाने निकला हूं।।

झूठ के सौदागरों को मै भगाने निकला हूं
जग को सच का प्रतिबिंब दिखाने निकला हूं।।

नाकामियों के दलदल से मैं बाहर आने निकला हूं
कामयाबी की नई मिसाल आज गाने निकला हूं।।

पथ की कठिनाई को ठेंगा दिखाने निकला हूं
आज सीधा ठानकर मंजिल को पाने निकला हूं।।

बेवक्त की परेशानियों को मैं मिटाने निकला हूं
मुश्किलों से आज मै पार पाने निकला हूं।।

परछाई से दूजो की मै बाहर आने निकला हूं
परछाई आज खुद की मै बनाने निकला हूं।।

प्यार से दुनिया को मै सजाने निकला हूं
जीना मिलके जग को सीखने निकला हूं।।

रूठी हसरतों को मनाने निकला हूं
जिंदगी के गीत को खुल के गाने निकला हूं।।

नफरतों के दर्मिया मोहब्बत उगाने निकला हूं
खुदा की हसरतों सी इंसानियत निभाने निकला
--आनंद सगवालिया

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