Tuesday, 29 January 2019

मिसालें किसकी दू?
वह जिंदगी जो कांटो पर खड़ी हैं?
वह खुशी जिसमें रिश्तों की गांठ पड़ी हैं?
वह नींद जिसमें सपनों की पोटली गड़ी हैं?
या वह खूबसूरती जो बस इतराने पर अड़ी हैं?

मिसालें किसकी दू?
वह वक्त जो रुकना नहीं जानता?
वह मन जो कहा नहीं मानता?
वह यौवन जो खुदको नहीं पहचानता?
या वह इश्क जो ख़ुदपरस्ती को ही खुदा जानता?

मिसालें किसकी दू?
मैं जो मुझ में ही चूर हैं?
हम जो की लगे के खुद से ही दूर हैं?
अहम जो फैला तलक सुदूर हैं?
या वहम जो कहता कि तू हूर हैं?

मैं तो खुद ही खोट हूं!
नोटबंदी में बंद नोट हूं!!
बता मुझे क्यों न सिसकी लू?
मिसालें किसकी दू?
मिसालें किसकी दू?

-- आनंद सगवालिया

Monday, 21 January 2019

स्थिर नहीं ज्वलंत हूं मैं
स्वरूप कोई प्रपंच हूं मैं
महासागर प्रशांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं

शब्दों से महंत हूं मैं
वाणी से एक संत हूं मैं
विचारों से वृतांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं

भाषा से अपभ्रंश हूं मैं
चेहरे से अनंत हूं मैं
भावों से नितांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं

-- आनंद सगवालिया

Friday, 11 January 2019

असल इम्तेहान बाकी हैं
मुझमें इत्मीनान बाकी हैं
न धैर्य को समझ मेरी निष्कामता
भूल मत अभी तो मेरा इंतकाम बाकी हैं

समुद्र सा विशाल ह्रदय
पानी पर भी चल सके
सोच को मेरी न मान निर्लज्जता
अभी तो खुदा का भी पैग़ाम बाकी हैं

सफलता मेरी साथी हैं
वक्त मेरा सहपाठी हैं
मेरी मुस्कान को ना मान निशब्दता
अभी तो मेरी तकदीर का आव्हान बाकी हैं

पथ मेरा दुर्गम हैं
मंजिल की दूरी भी न कम हैं
न चाल को मेरी मान निष्फलता
अभी तो दौड़ का मेरी इंतजाम बाकी हैं

जिंदगी कहां हैं सरल
यह व्यंग्य जैसे हो तरल
तरकीबों को न मान मेरी निर्बलता
अभी तो मुश्किलों से कतलेआम बाकी हैं

--- आनंद सगवालिया