स्थिर नहीं ज्वलंत हूं मैं
स्वरूप कोई प्रपंच हूं मैं
महासागर प्रशांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं
शब्दों से महंत हूं मैं
वाणी से एक संत हूं मैं
विचारों से वृतांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं
भाषा से अपभ्रंश हूं मैं
चेहरे से अनंत हूं मैं
भावों से नितांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं
-- आनंद सगवालिया
स्वरूप कोई प्रपंच हूं मैं
महासागर प्रशांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं
शब्दों से महंत हूं मैं
वाणी से एक संत हूं मैं
विचारों से वृतांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं
भाषा से अपभ्रंश हूं मैं
चेहरे से अनंत हूं मैं
भावों से नितांत हूं मैं
बस अभी शांत हूं मैं
-- आनंद सगवालिया
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