Friday, 11 January 2019

असल इम्तेहान बाकी हैं
मुझमें इत्मीनान बाकी हैं
न धैर्य को समझ मेरी निष्कामता
भूल मत अभी तो मेरा इंतकाम बाकी हैं

समुद्र सा विशाल ह्रदय
पानी पर भी चल सके
सोच को मेरी न मान निर्लज्जता
अभी तो खुदा का भी पैग़ाम बाकी हैं

सफलता मेरी साथी हैं
वक्त मेरा सहपाठी हैं
मेरी मुस्कान को ना मान निशब्दता
अभी तो मेरी तकदीर का आव्हान बाकी हैं

पथ मेरा दुर्गम हैं
मंजिल की दूरी भी न कम हैं
न चाल को मेरी मान निष्फलता
अभी तो दौड़ का मेरी इंतजाम बाकी हैं

जिंदगी कहां हैं सरल
यह व्यंग्य जैसे हो तरल
तरकीबों को न मान मेरी निर्बलता
अभी तो मुश्किलों से कतलेआम बाकी हैं

--- आनंद सगवालिया

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