Wednesday, 3 July 2019

आज ज़िक्र तेरा हो तो आंसू झलकते हैं
काफी तेरा नाम ही था कभी मेरी मुस्कान को

भागता हूं दूर अब तो तेरे साए से भी
काफी तेरा इश्क ही था कभी मेरी पहचान को

भूल से भी तुझे देखने की भूल अब नहीं होती
काफी तेरा नूर ही था कभी मेरे हर अरमान को

राहों में चलता हूं अकेले आंखो में आंसू अब लिए
काफी तेरा साथ ही था कभी मेरी हर शाम को

चाहकर भी अब न रोक पाता हू खुद को
काफी तेरे लफ्ज़ थे कभी मेरे इत्मीनान को

ख्वाहिश मैं तुझसे न मिलू सहसा भी अब कहीं
काफी तेरा दर्द हैं मेरी राह ए शमशान को

बेबुनियाद तेरे वादे तेरी कसमें थी बेवफा
काफी तेरी रुखसत हैं मेरे इंतकाम को

-- आनंद सगवालिया

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