क्या कहूं उसके बारे में
इश्क़ की तलब तो मेरे लबों को भी थी
वो आए तो मैं मुकर सकता था
पर मुहब्बत की लत तो मेरी रगों को भी थी
जब वो गए तो एक ही ख्याल आया
के सवाल मेरा लाज़मी सा था
वो कहते रहे के काबिल नहीं हम
मगर वफ़ा की सनक तो मेरी हदो को भी थी
आइना दिखा दिया मेरे महबूब ने
मैं खोया हुआ कहीं और ही था
जब बोला के अब एक न रहे तुम हम
संभलने की जरूरत तो मेरी हरकतों की भी थी
क्या कहूं उसके बारे में
इश्क़ की तलब तो मेरे लबों को भी थी
-- आनंद सगवालिया
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