Saturday, 31 August 2019

जब सोच नहीं छोटी मेरी
क्यों फिर मैं आराम करू
जब निश्चय हुआ सुदृढ मेरा
कोई अनोखा काम करू

जब लड़ना ही हैं अंधेरों से
फिर क्या सुबह क्या शाम डरू
जब दिख रही हैं आगे मंजिल
फिर क्यों मैं विश्राम धरू

जब चलते रहना ही फितरत
फिर क्यों क्षण भर निष्काम रहूं
चाहे करू प्रयत्न बारंबार
फिर अंत में न मैं नाकाम रहूं

जब आगे आएंगी मुश्किल
क्यूं न अभी से पहचान करू
जब विपत्तियां हिस्सा जीवन का
क्यों फिर में परेशान मरू
©bejuban

आनंद सगवालिया

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