जब सोच नहीं छोटी मेरी
क्यों फिर मैं आराम करू
जब निश्चय हुआ सुदृढ मेरा
कोई अनोखा काम करू
जब लड़ना ही हैं अंधेरों से
फिर क्या सुबह क्या शाम डरू
जब दिख रही हैं आगे मंजिल
फिर क्यों मैं विश्राम धरू
जब चलते रहना ही फितरत
फिर क्यों क्षण भर निष्काम रहूं
चाहे करू प्रयत्न बारंबार
फिर अंत में न मैं नाकाम रहूं
जब आगे आएंगी मुश्किल
क्यूं न अभी से पहचान करू
जब विपत्तियां हिस्सा जीवन का
क्यों फिर में परेशान मरू
©bejuban
आनंद सगवालिया
क्यों फिर मैं आराम करू
जब निश्चय हुआ सुदृढ मेरा
कोई अनोखा काम करू
जब लड़ना ही हैं अंधेरों से
फिर क्या सुबह क्या शाम डरू
जब दिख रही हैं आगे मंजिल
फिर क्यों मैं विश्राम धरू
जब चलते रहना ही फितरत
फिर क्यों क्षण भर निष्काम रहूं
चाहे करू प्रयत्न बारंबार
फिर अंत में न मैं नाकाम रहूं
जब आगे आएंगी मुश्किल
क्यूं न अभी से पहचान करू
जब विपत्तियां हिस्सा जीवन का
क्यों फिर में परेशान मरू
©bejuban
आनंद सगवालिया
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