Thursday, 25 January 2018

मै हु भाग्यशाली भारत मेरा भाग्य विधाता
चरणों मे शीश नमन हैं तेरे मेरी प्यारी भारत माता
अमृत का घूँट यहा है नभ पावन जल बरसाता
माँ गंगा की गौद में पुण्य पावन मन हो जाता
हिन्दू मुस्लिम रहते यहां यु जैसे रहते हो दो भ्राता
ये वो भी हैं जिसपर कोई न लांछन आ पाता
भारत माँ की गौद में स्थिरता मन स्वतः पा जाता
प्रकृति की सुंदरता से यहा तन आनंदित हो जाता
लोकतंत्र की बेलियो से भारत का कण कण यु जुड़ जाता
कश्मीर से कन्याकुमारी तक तिरंगा मदमस्त लहराता
मै हु भाग्यशाली भारत मेरा भाग्य विधाता
चरणों मे शीश नमन हैं तेरे मेरी प्यारी भारत माता

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
----आनंद सगवालिया

Sunday, 21 January 2018

जन्मा था वह नीचे घर में लेकर एक अंगड़ाई
लड़कर समाज से उसने की थी अपनी पढाई
कभी सोच न सका कोई लोगो से यु लड़कर
बन जाएगा यह लड़का एक दिन बेरिस्टर
गांधी के आंदोलन में उसने कंधे से कन्धा मिलाया
जंग ऐ आजादी में  कूदकर अंग्रेजो को भगाया
अंग्रेजो से लड़कर जिसने यातना जेल की खायी
जातिवाद के दलदल की बेड़िया उसने मिटाई
छुटपन मे शिकार हुआ जो छुआछूत अपमान का
बड़ा हुआ तो बना वही निर्माता संविधान का
भाग्य लिखकर भारत का बना भीम इतिहास हैं
भारत के निर्माण का आंबेडकर ही शिल्पकार हैं


बाबा साहब अम्बेडकर को समर्पित
----आनंद सगवालिया

Friday, 19 January 2018

राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
रोजगार नही हैं जनता को, पर धर्म की खिचड़ी पका रहा
कोई एक वक्त की रोटी को तरसता, कोई गौ माता के किस्से गा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
कोई मंदिर जा रहा तो, कोई टोपी को अपना बता रहा
रंगों पर भी आज आदमी, अपना हक जता रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
शिक्षा को तरसता कोई तो, कोई विध्यालयो को बाजारू बना रहा
पीने को पानी नही किसी के पास, तो कोई मदिरा को पानी बना रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
रुपये को तरसता कोई, तो कोई करोडो लेकर उड़ जा रहा
फसलो का उचित मूल्य मांगता किसान, कर्ज उद्योगपति का उतारा जा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
सीमा पर शहीद लाखो हो गए, देश उनके नाम पर राजनीती की रोटियां पका रहा
कोई आज भी तरसता आजादी को, कोई आजादी के नायकों को गुनहगार बता रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा

----आनंद सगवालिया

Sunday, 7 January 2018

चलते चलते युही ये सफर एक दिन काट जाएगा
कारवाँ जिंदगी का एक दिन सिमट जाएगा
आज किसी का हैं कल तेरा भी वक्त आएगा
पहले ही सोच लेना जब जाएगा तो खुदा को क्या बतलाएगा
तराना जिंदगी का हँसके गाएगा
या दुखी मन से पछताएगा
कर्म का ही ये खेल है बन्दे
अच्छे किए तो तर जाएगा
नही तो टूट कर बिखर जाएगा
खेल की तरह हे जिंदगी भी
कोई जीतकर जाएगा कोई हारकर जाएगा
ख़ुशी के पल समेटना सुरु कर दो
क्या पता तुम्हारा तार कब कट जाएगा
राह में पत्थर मिलेंगे तो क्या तू कर जाएगा
ठोकर उनसे खाएगा या उनको पार कर जाएगा
चलते चलते युही ये सफर एक दिन काट जाएगा
कारवाँ जिंदगी का एक दिन सिमट जाएगा।।

---- आनंद सगवालिया