Friday, 19 January 2018

राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
रोजगार नही हैं जनता को, पर धर्म की खिचड़ी पका रहा
कोई एक वक्त की रोटी को तरसता, कोई गौ माता के किस्से गा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
कोई मंदिर जा रहा तो, कोई टोपी को अपना बता रहा
रंगों पर भी आज आदमी, अपना हक जता रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
शिक्षा को तरसता कोई तो, कोई विध्यालयो को बाजारू बना रहा
पीने को पानी नही किसी के पास, तो कोई मदिरा को पानी बना रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
रुपये को तरसता कोई, तो कोई करोडो लेकर उड़ जा रहा
फसलो का उचित मूल्य मांगता किसान, कर्ज उद्योगपति का उतारा जा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
सीमा पर शहीद लाखो हो गए, देश उनके नाम पर राजनीती की रोटियां पका रहा
कोई आज भी तरसता आजादी को, कोई आजादी के नायकों को गुनहगार बता रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा

----आनंद सगवालिया

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