क्यों छद्म हवा सी तू मेरे सामने न आती हैं
क्यों बहते पानी सी तू मेरे ख्वाबों में बह जाती हैं
क्यों बलखाती नागिन सी तू इतना इतराती हैं
क्यों लहराती बेलों सी तू इतना मुख मटकाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों बहते पानी सी तू मेरे ख्वाबों में बह जाती हैं
क्यों बलखाती नागिन सी तू इतना इतराती हैं
क्यों लहराती बेलों सी तू इतना मुख मटकाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों समुद्री लहरों सी तू मेरा मन अस्थिर कर जाती हैं
क्यों मधुशाला सी मादकता तू तन में मेरे फैलाती हैं
क्यों सुकून मां की ममता सा तू दिल को दे जाती हैं
क्यों निश्चल गंगा सी तू इतना आनंद बरसाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों मधुशाला सी मादकता तू तन में मेरे फैलाती हैं
क्यों सुकून मां की ममता सा तू दिल को दे जाती हैं
क्यों निश्चल गंगा सी तू इतना आनंद बरसाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों अश्कों जैसी तू निर्मल नयन कर जाती हैं
क्यों पत्थर जैसी तू यह सख्ती मुझे दिखाती हैं
क्यों सूरज सी गर्म तू गुस्से में मुझपर हो जाती हैं
क्यों बर्फ सी ठंडक तू लिपट मुझसे पहुंचाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों पत्थर जैसी तू यह सख्ती मुझे दिखाती हैं
क्यों सूरज सी गर्म तू गुस्से में मुझपर हो जाती हैं
क्यों बर्फ सी ठंडक तू लिपट मुझसे पहुंचाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों मेहरबानी रब सी तू मुझ पर दिखलाती हैं
क्यों सांसों सी तू नरम हवा मुझ पर यूं उड़ाती हैं
क्यों बेरुखी पतझड़ सी तू कभी कभी हो जाती हैं
क्यों इन्द्रधनुष सी तू मुझ पर रंग कई उड़ेल जाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों सांसों सी तू नरम हवा मुझ पर यूं उड़ाती हैं
क्यों बेरुखी पतझड़ सी तू कभी कभी हो जाती हैं
क्यों इन्द्रधनुष सी तू मुझ पर रंग कई उड़ेल जाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों अधजल गागर सी तू रूप तेरा छलकाती हैं
क्यों सरपट घोड़े सी तू दूर मुझसे भाग जाती हैं
क्यों बनकर बूंद बारिश सी तू मुझे यूं भिगाती हैं
क्यों सियाह रात सी तू केवल स्वप्न बनकर आती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
क्यों सरपट घोड़े सी तू दूर मुझसे भाग जाती हैं
क्यों बनकर बूंद बारिश सी तू मुझे यूं भिगाती हैं
क्यों सियाह रात सी तू केवल स्वप्न बनकर आती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं
---- आनंद सगवालिया
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