Saturday, 29 June 2019

ज्वाला सी जल रही
आग सीने में पल रही
नितान्त ये बात खल रही
उस मासूम की गलती क्या?

दरिंदगी को छोड़कर
विचार को निचोड़कर
भयभीत मैं हूं सोचकर
उस मासूम की गलती क्या?

ख़्याल तुझको आया ना
तू थोड़ा भी लजाया ना
मन में तेरे आया ना
उस मासूम की गलती क्या?

कहीं वह बरस आठ की
कहीं पर वह साठ की
दिखीं न तुझको लाचारी
उस मासूम की गलती क्या?

रक्तरंजित हैं यह सत्य
देखकर यह घिनौना कृत्य
भर्त्सना पर सवाल भारी
उस मासूम की गलती क्या?

कोई सड़क पर थी खड़ी
कोई पालने में पड़ी
बलात्कार जो हुआ उसका
उस मासूम की गलती क्या?

सुरक्षा जिनकी जिम्मेदारी
राजनीति उनमें भारी
बना जो रक्षक ही भक्षक
उस मासूम की गलती क्या?

कोई बोले व्यभिचारी
कोई बोले बलात्कारी
मुझको तू बता दे बस
उस मासूम की गलती क्या?

आज जो न तू लड़ी
दुर्गा बनके न खड़ी
पूछूंगा तो तुझसे भी
उस मासूम की गलती क्या?

कब तक कहलाएगी अबला
होश जो न अब भी संभला
सवाल अब भी जो न बदला
उस मासूम की गलती क्या?

-- आनंद सगवालिया
समाचार की धूमिल होती मर्यादा तड़पाती हैं
टीआरपी के खेल पर सबकी सुई अटक जाती हैं
कोई सत्ता प्रेमी हुआ कोई विपक्षी लार टपकाता हैं
लालच में अपने देखो ये जनता को भड़कता हैं
बार बार दिखा झूठ को सच ये अब बनवाता हैं
सच्ची झूठी मगर आकर्षक खबरे बस चलाता हैं
किसानों की पीड़ा देखने न कोई जंतर मंतर जाता हैं
नेताओं के पीछे पीछे कैलाश केदारनाथ दौड़ लगाता है
रोजगार की हालत सच्ची अब ना ये बतलाता हैं
विज्ञापन दिखला दिखला कर अब ये दुकान चलाता हैं
मुद्दों को पीछे धकेल नेता को तरजीह दी जाती हैं
लगता हैं इनकी झोली अब ऊपर से भर दी जाती हैं
खबरे कम आडंबर ज्यादा यही इनका खेल है
मूर्ख निकम्मी जनता के संग इनका तगड़ा मेल है
कड़वी सच्चाई के घूंट अब ये न हमें पिलाते हैं
फेक फेक लंबी लंबी ये हमको बहुत झिलाते हैं
जब जब ऐसे लोभी जन पत्रकार बन जाते हैं
सत्ता से ज्यादा लोकतंत्र को ये नुकसान पहुंचाते हैं
भारत को विश्व गुरु अगर हमको बनाना हैं
सबसे पहले सच की अलख जन जन में जगाना हैं
जब सच पहुंचेगा घर घर को तब ही उजियारा आएगा
वरना क्या मोदी क्या राहुल कोई कुछ न कर पाएगा

जय हिन्द जय भारत
-- आनंद सगवालिया

Thursday, 20 June 2019

तुम क्या जानों मोल प्रीत का
तुम तो बड़ी रुसवाई हो
नखरे दिखाती रोज मुझे
फिर भी तुम मुझको भायी हो

मुद्दत हुई इंतजार करते
तुम पास मेरे कब आई हो
आजीवन जिससे प्यार किया
तुम तो वो हरजाई हो

कैसे खुदको आजाद करू
तुम तो नशे सी छाई हो
जिसने छूकर बीमार किया
तुम वो ठंडी पुरवाई हो

स्वप्न हसी एक देखा मैने
तुम तो मन में आई हो
जिसको खाऊ बड़े चाव से
तुम वो रसीली मिठाई हो

दर्द देखकर भी तुम मेरा
न हाल जानने आई हो
दिल का हाल बेहाल मेरा पर
तुम कब मेरे लिए घबराई हो

रास्ता देख रहा हूं जिसका
तुम वह स्वप्न लुगाई हो
जिसको सोता दिल से लपेटकर
तुम तो मेरी रजाई हो

तुम क्या जानों मोल प्रीत का
तुम तो बड़ी रुसवाई हो
नखरे दिखाती रोज मुझे
फिर भी तुम मुझको भायी हो

--- आनंद सगवालिया

Sunday, 2 June 2019

कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं

कष्ट भोगकर जीना लत हैं
भोग विलास मन की आदत है
मानव मन जो वशीकरण हुआ
तो मूर्ख भी सन्यासी हैं

प्रकाश से भी तेज भागे जो
लालच में सबसे आगे जो
मानव मन जो विलीन हुआ
घर में ही अपने काशी हैं

जीवन मरण से हुआ विरक्त
समझा जो शासक ही हैं वक्त
मानव मन जो हुआ शसक्त
तो शूद्र भी संतो की जाती हैं

कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं

-- आनंद सगवालिया