Sunday, 2 June 2019

कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं

कष्ट भोगकर जीना लत हैं
भोग विलास मन की आदत है
मानव मन जो वशीकरण हुआ
तो मूर्ख भी सन्यासी हैं

प्रकाश से भी तेज भागे जो
लालच में सबसे आगे जो
मानव मन जो विलीन हुआ
घर में ही अपने काशी हैं

जीवन मरण से हुआ विरक्त
समझा जो शासक ही हैं वक्त
मानव मन जो हुआ शसक्त
तो शूद्र भी संतो की जाती हैं

कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं

-- आनंद सगवालिया

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