कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं
कष्ट भोगकर जीना लत हैं
भोग विलास मन की आदत है
मानव मन जो वशीकरण हुआ
तो मूर्ख भी सन्यासी हैं
प्रकाश से भी तेज भागे जो
लालच में सबसे आगे जो
मानव मन जो विलीन हुआ
घर में ही अपने काशी हैं
जीवन मरण से हुआ विरक्त
समझा जो शासक ही हैं वक्त
मानव मन जो हुआ शसक्त
तो शूद्र भी संतो की जाती हैं
कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं
-- आनंद सगवालिया
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं
कष्ट भोगकर जीना लत हैं
भोग विलास मन की आदत है
मानव मन जो वशीकरण हुआ
तो मूर्ख भी सन्यासी हैं
प्रकाश से भी तेज भागे जो
लालच में सबसे आगे जो
मानव मन जो विलीन हुआ
घर में ही अपने काशी हैं
जीवन मरण से हुआ विरक्त
समझा जो शासक ही हैं वक्त
मानव मन जो हुआ शसक्त
तो शूद्र भी संतो की जाती हैं
कुंठित मन हुआ जानकर
मन कितना अनुरागी हैं
मानव मन जो क्षीण हुआ
जीवन समझो वैरागी हैं
-- आनंद सगवालिया
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