Saturday, 31 August 2019

कागज की कश्ती को पतवार कहां चाहिए
बचपन की मस्ती को साझेदार कहां चाहिए
जब भूख लगे तो खा लेते हैं कुछ भी
नन्हे पेट को घरबार कहां चाहिए
-- आनंद सगवालिया
मैं सागर हूं
लहरों के नीचे पलता हूं
कभी धीमे कभी तेज
हरदम पर मैं चलता हूं

मैं सागर हूं
दूजो की खातिर जलता हूं
कभी भूकंप कभी सुनामी
हरदम पर मैं संभलता हूं

मैं सागर हूं
जीवन को लेकर चलता हूं
कभी ठहर कभी लहर
हरदम पर मैं मचलता हूं

मैं सागर हूं

--- आनंद सगवालिया
जहर का ही तो प्याला हैं, हंसते हंसते पी जाऊंगा
सीख की ही तो हाला हैं, पीकर भी जी जाऊंगा
एक घूंट छीन ले जाए , खुशियों का मेरी आशियां
कमजोर इमारतों के सहारे, रहबर उम्र बिताऊंगा
जहर का ही तो प्याला हैं, हंसते हंसते पी जाऊंगा
सीख की ही तो हाला हैं, पीकर भी जी जाऊंगा
न समझ के तेरे बे - अदब, फैसलों का कोई जोर हैं
बिना तेरी इल्तेज़ा के, वक्त अपना भी चुराऊंगा
जहर का ही तो प्याला हैं, हंसते हंसते पी जाऊंगा
सीख की ही तो हाला हैं, पीकर भी जी जाऊंगा
कांटो से बैर तो नहीं, हो थोड़ी देर ही सही
राहें ढूंढते ढूंढते, बेफिक्र चलते जाऊंगा
जहर का ही तो प्याला हैं, हंसते हंसते पी जाऊंगा
सीख की ही तो हाला हैं, पीकर भी जी जाऊंगा
- आनंद सगवालिया
जब सोच नहीं छोटी मेरी
क्यों फिर मैं आराम करू
जब निश्चय हुआ सुदृढ मेरा
कोई अनोखा काम करू

जब लड़ना ही हैं अंधेरों से
फिर क्या सुबह क्या शाम डरू
जब दिख रही हैं आगे मंजिल
फिर क्यों मैं विश्राम धरू

जब चलते रहना ही फितरत
फिर क्यों क्षण भर निष्काम रहूं
चाहे करू प्रयत्न बारंबार
फिर अंत में न मैं नाकाम रहूं

जब आगे आएंगी मुश्किल
क्यूं न अभी से पहचान करू
जब विपत्तियां हिस्सा जीवन का
क्यों फिर में परेशान मरू
©bejuban

आनंद सगवालिया
क्या कहूं उसके बारे में
इश्क़ की तलब तो मेरे लबों को भी थी
वो आए तो मैं मुकर सकता था
पर मुहब्बत की लत तो मेरी रगों को भी थी
जब वो गए तो एक ही ख्याल आया
के सवाल मेरा लाज़मी सा था
वो कहते रहे के काबिल नहीं हम
मगर वफ़ा की सनक तो मेरी हदो को भी थी
आइना दिखा दिया मेरे महबूब ने
मैं खोया हुआ कहीं और ही था
जब बोला के अब एक न रहे तुम हम
संभलने की जरूरत तो मेरी हरकतों की भी थी
क्या कहूं उसके बारे में
इश्क़ की तलब तो मेरे लबों को भी थी

-- आनंद सगवालिया

Wednesday, 3 July 2019

आज ज़िक्र तेरा हो तो आंसू झलकते हैं
काफी तेरा नाम ही था कभी मेरी मुस्कान को

भागता हूं दूर अब तो तेरे साए से भी
काफी तेरा इश्क ही था कभी मेरी पहचान को

भूल से भी तुझे देखने की भूल अब नहीं होती
काफी तेरा नूर ही था कभी मेरे हर अरमान को

राहों में चलता हूं अकेले आंखो में आंसू अब लिए
काफी तेरा साथ ही था कभी मेरी हर शाम को

चाहकर भी अब न रोक पाता हू खुद को
काफी तेरे लफ्ज़ थे कभी मेरे इत्मीनान को

ख्वाहिश मैं तुझसे न मिलू सहसा भी अब कहीं
काफी तेरा दर्द हैं मेरी राह ए शमशान को

बेबुनियाद तेरे वादे तेरी कसमें थी बेवफा
काफी तेरी रुखसत हैं मेरे इंतकाम को

-- आनंद सगवालिया

Saturday, 29 June 2019

ज्वाला सी जल रही
आग सीने में पल रही
नितान्त ये बात खल रही
उस मासूम की गलती क्या?

दरिंदगी को छोड़कर
विचार को निचोड़कर
भयभीत मैं हूं सोचकर
उस मासूम की गलती क्या?

ख़्याल तुझको आया ना
तू थोड़ा भी लजाया ना
मन में तेरे आया ना
उस मासूम की गलती क्या?

कहीं वह बरस आठ की
कहीं पर वह साठ की
दिखीं न तुझको लाचारी
उस मासूम की गलती क्या?

रक्तरंजित हैं यह सत्य
देखकर यह घिनौना कृत्य
भर्त्सना पर सवाल भारी
उस मासूम की गलती क्या?

कोई सड़क पर थी खड़ी
कोई पालने में पड़ी
बलात्कार जो हुआ उसका
उस मासूम की गलती क्या?

सुरक्षा जिनकी जिम्मेदारी
राजनीति उनमें भारी
बना जो रक्षक ही भक्षक
उस मासूम की गलती क्या?

कोई बोले व्यभिचारी
कोई बोले बलात्कारी
मुझको तू बता दे बस
उस मासूम की गलती क्या?

आज जो न तू लड़ी
दुर्गा बनके न खड़ी
पूछूंगा तो तुझसे भी
उस मासूम की गलती क्या?

कब तक कहलाएगी अबला
होश जो न अब भी संभला
सवाल अब भी जो न बदला
उस मासूम की गलती क्या?

-- आनंद सगवालिया