Saturday, 29 December 2018

जो अपने लहू से देश को तृप्त कर जाता हैं
जो पसीने से लथपथ खेतो में फसल उगाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

कर्म को धर्म मानकर जो बड़ता चला जाता हैं
पहाड़ दुखो का हसकर जो वहन कर जाता है
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

आतंकी अधर्मी को तू माफ कर जाता हैं
पर धर्म को पालने वाला साफ यहां हो जाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

ढोंगी भ्रष्टाचारी को भी मस्त मजा करवाता हैं
न हो अत्याचारी तो तू उसको बड़ा रुलाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

देश धर्म से नाता जिनका उनको सबक सिखाता हैं
पापी जितना हो उतना जग में वह हसता चला जाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

एक सैनिक देश पर सर्वस्व कुर्बान कर जाता हैं
किसान भरने को पेट सबके खुद लूटता चला जाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

भारत भूमि के जवानों को क्यों इतना तड़पाता हैं
हिन्द के किसानों को क्यों दुखदर्द पहुंचाता हैं
क्यों खुदा तू हमेशा एसो को ही पास बुलाता हैं

-- आनंद सगवालिया

Tuesday, 25 December 2018

छूटा बहुत जिंदगी की दौड़ में
टूटा बहुत फालतू हौड़ में
चलता रहा अपना गम छुपाए
सर्द रातों में बहाने बनाए
दर्द बताना चाहते थे
कभी किसी को बता न पाए
खुशियां जतानी चाही
कभी किसी को जता न पाए
रूठकर बैठे कभी
कभी मस्ती में ठहाके लगाए
मनमारकर रह गए कहीं
तो कहीं जिंदगी के मज़े उड़ाए
रफ़्तार पकड़ी कभी
कभी थामकर कुछ पल बिताए
बुरा न माना कभी किसी गलत बात का
एहसास दर्द का हरदम ज्ञात था
आज कुछ ज्यादा छूटा
सपना फिर आंखो में टूटा
काश यह दिन फिर एक बार आए
फिर मुझको यह याद दिलाए
चलना मेरा काम है
यही तो जिंदगी का नाम है

-- आनंद सगवालिया

Wednesday, 21 November 2018


अलहदा सा राहो में मैं चलता रहा अपना गम छुपाए
कसक कई दिल में थी लेकिन रह गया बिन किसी को बताएं
पतझड़ से आंसू बहते न चैन दिन न रात
दावानल सी ज्वाला करती कतरा कतरा मुझको राख़
एक आरज़ू लेके निकला जियुंगा हरदम मनमर्जी से
जग ने हरपल यही सिखाया मिलता नहीं कुछ बिन अर्जी के
सोचा के मुसाफिर हूं मैं भी जिंदगी की गाड़ी में
कितना ही करतब दिखला दू फिर भी दिखु अनाड़ी मैं
कोई कहता साम बुरा है कोई कहता दाम बुरा है
लेकिन इन दोनों के बिन कहा जीवन का काम पूरा है
यहां देखू के वहां देखू मैं सबकी अपनी मस्ती हैं
लगता है रोज जिंदगी मुझपे ठहाके मार के हस्ती है
एक ओर कोशिश की मैने सफलता के परिणाम की
सजा फिर से मिली मुझे कोशिश के दुष्परिणाम की
- आनंद सगवालिया

Saturday, 8 September 2018


युग युग की बात है दर्द जन्मजात हैं
मांगने से भला कब मिलता किसी का साथ हैं
जिंदगी खुले पन्नों की किताब हैं
जिसकी जैसी जरूरत उसका उतना हिसाब हैं
तन्हाइयों के आलम का सबको अहसास हैं
झूठ पर रहता सच से ज्यादा विश्वास है
सब देखें अपना दूजो से न अब आस हैं
सफर जारी है पर रास्तों का न आभास है
दौड़ के दौर में वक्त किसके पास हैं
युग युग की बात है दर्द जन्मजात हैं
मांगने से भला कब मिलता किसी का साथ हैं
-- आनंद सगवालिया

Sunday, 19 August 2018


हरा भरा बागियों से मिलकर,
बात करू प्रकृति से खिलकर।
निश्चल जल को देह में भरकर,
पहाड़ों को धारण करकर।।

आज मेरी हालत को देखकर,
दुख को भी दुख हो रहा हैं।
काल का विकराल रूप देख,
प्राणी हर एक रो रहा हैं।।

बांध भरे मानव सेवा को,
आज वही बन गए कब्रगाह।
क्या नदी और क्या कोई नाला,
जल बन गया एक ज्वाला।।

देता दुनिया को जो मसाले,
आज वही वंचित हैं उनसे।
सुंदरता धरती की पाले,
आज वही देखे दुखी मनसे।।

हसी ठिठोली फिर से करने को,
देश खुदा का फिर बनने को।
अजर अमर भारत के चरणों में,
शोभामयी पुष्पो सा खिलने को।।

लड़के काल से कल फिर,
खड़ा होने की जिद ठान ली।
देख हार को खुद के पीछे,
जीतने कि फिर राह जान ली।।

वहीं बगिया होगी कल फिर,
वहीं भव्यता होगी चल फिर।
क्रूर हालातो से जीतकर,
अद्भुत दृश्य बनाऊंगा।।

सुख को भी सुख देने की,
फिर क्षमता अपनी दिखाऊंगा।
यश गाथा गौरव के अपनी,
के इक बार फिर गाऊंगा।।

हा मैं केरल हूं,
हा मैं केरल हूं।
फिर सुंदर बन जाऊंगा,
फिर खुशीया बरसाऊंगा।।
-- आनंद सगवालिया
।।बाढ़ पीड़ित केरल को समर्पित चंद पंक्तियां।।

Friday, 17 August 2018


स्थिर बुद्धि दृढ़ इरादा
देश सेवा का लेकर इरादा
अचंभित करती वाकपटुता
न पाली किसी से कटुता
लक्ष्य राष्ट्र सर्वोत्तम अपना
देखा था एक उत्तम सपना
न परवाह सरकार की थी
इच्छा राष्ट्र के आकार की थी
पतित पावन मन था सच्चा
बेबाक जैसे हो कोई बच्चा
जो कल तक रहता न चुप
आज शांत हैं जैसे अंधेरा घुप
घोर अभाव छोड़ कर जग में
बांध कोई डोर को पग में
चला गया जो महामानव
कहता था मृत्यु हैं अटल
लौट आना फिर इस राष्ट्र में
बनके भारत के नव निर्माता
होकर भी वैचारिक मतभेद
न हुए कभी किसी से मनभेद
डाले सबके मन में डेरा
नमन तुम्हारे चरणों में मेरा
महान कवि अटल जी को भावभीनी श्रद्धांजलि
-- आनंद सगवालिया

Tuesday, 14 August 2018


मां भारती का हर पूत आजादी का परवाना था
न लाठी की थी परवाह ना जान की थी फिकर
वो भी क्या दिन थे जब वतन पर मिटने को बच्चा बच्चा दीवाना था
धर्म जुदा और जात जुदा पर न थे उनके हाथ जुदा
गांधी का साथी मौलाना और अशफ़ाक भगत का याराना
तौर तरीके न मिले पर सोच मिली थी सबकी
अंग्रेजो की लालकर वो कहते थे गीदड़ भभकी
न मौत का डर था दिल में न खौफ कोई था आंखो में
जोश बदन में न भी हो तो जोश भरा था इरादों में
नेहरू के कहने पर बच्चा बच्चा जुट जाता था
आजाद नाम रखकर कोई वतन पर मस्ती में लूट जाता था
शर्म भरी है आज आंखो में कैसे तुमको ये बतलाए
कीमत आजादी की कैसे इन मक्कारो को समझाए
आज न सुधरे तो कल फिर कोई गुलाम बनाएगा
फिर गुलाम हुए तो न कोई भगत सिंह न गांधी अब आएगा
राजनीति न करो नाम पर उन शूर वीरो के
पूज्यनीय है एक एक अब चरण छुओ भारत के हीरो के

स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर तमाम भारतवासियों को बधाई।
मैं कृतज्ञ राष्ट्र का नागरिक तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को नमन करता हूं।
न मिला आजादी को कुर्बान होने का सुख हमें
किस्मत उन परवानों की और ही थी।
इंकलाब ज़िंदाबाद
हिन्दुस्तान जिंदाबाद
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय
आनंद सगवालिया

Monday, 23 July 2018


न मुकम्मल हो मोहब्ब्त तो क्या ग़म हैं
आरज़ू न तब काम थी न अब कम हैं
ख्वाहिशें तब भी बेतहाशा थी
ख्वाहिशें अब भी बेतहाशा हैं

चाहत इस कदर हावी दिलों दिमाग पर हैं
नासमझ इकरार तब भी जरा सा था
नासमझ इकरार अब भी जरा सा हैं
बेपनाह इश्क में तब भी निराशा थी
बेपनाह इश्क में अब भी निराशा हैं

नज़रों से गुफ्तगू का आलम तो देखिए
लबो का कारवां तब भी बेदम था
लबो का कारवां अब भी बेदम हैं
जुनून पर अंधेरा तब भी निशा सा था
जुनून पर अंधेरा अब भी निशा सा हैं

एक नज़र फेराइएगा चेहरे पर इश्कबाजो के
हया की लाली न तब कम थी न अब कम हैं
मुस्कुराहट न बेजान तब थी
मुस्कुराहट न बेजान अब हैं
-- आनंद सगवालिया

Friday, 20 July 2018


नफरतों के दर्मिया मोहब्बत उगाने निकला हूं
खुदा की हसरतों सी इंसानियत निभाने निकला हूं।।

झूठ के सौदागरों को मै भगाने निकला हूं
जग को सच का प्रतिबिंब दिखाने निकला हूं।।

नाकामियों के दलदल से मैं बाहर आने निकला हूं
कामयाबी की नई मिसाल आज गाने निकला हूं।।

पथ की कठिनाई को ठेंगा दिखाने निकला हूं
आज सीधा ठानकर मंजिल को पाने निकला हूं।।

बेवक्त की परेशानियों को मैं मिटाने निकला हूं
मुश्किलों से आज मै पार पाने निकला हूं।।

परछाई से दूजो की मै बाहर आने निकला हूं
परछाई आज खुद की मै बनाने निकला हूं।।

प्यार से दुनिया को मै सजाने निकला हूं
जीना मिलके जग को सीखने निकला हूं।।

रूठी हसरतों को मनाने निकला हूं
जिंदगी के गीत को खुल के गाने निकला हूं।।

नफरतों के दर्मिया मोहब्बत उगाने निकला हूं
खुदा की हसरतों सी इंसानियत निभाने निकला
--आनंद सगवालिया

Saturday, 23 June 2018

हुए है काफी रोज आराम दिए कलम को
सोच रहा फिर कुछ खुद जुबानी लिख दू।
लिख दू किस्से अनछुए से
या कोई अनोखी कहानी लिख दू।
बहुत गौर किया दूजो पर
अब थोड़ी सी मनमानी लिख दू।
आयाम लिख दू धरती के
या खयाल आसमानी लिख दू।
चंचल चित की काया लिख दू
या बैरागी माया लिख दू।
लिखूं नया नया सा कुछ
या फिर कोई बात पुरानी लिख दू।
लिख दू चर्चे बचपन के
या अल्हड़ जवानी लिख दू।
अलाप लिख दू अपना
या फिर राग पराया लिख दू।
सवार हो खुद की धुन पर
गाथा कुछ स्वाभिमानी लिख दू।
झरने का निर्मल पानी लिख दू
या चेहरा किसी का नूरानी लिख दू।
बाते लिख दू बेतुकी कुछ
या कुछ बदजुबानी लिख दू।
लिखूं मुहब्बत के अफसाने
या नफरत के फसाने लिख दू।
लिख दू चर्चा चाय की
या मदिरा के अफसाने लिख दू।
लिख दू खुद को आज में
या खुदा को मेरे रूहानी लिख दू।
बुजदिली लिख दू आज कोई
या जिंदादिल कोई भवानी लिख दू।
लिख दू महीन संगमरमर को
या पत्थर कोई चट्टानी लिख दू।
लिखूं हल्की बहती हवा
या नदियों का बहता पानी लिख दू।
नज़रे लिख दू जादूगरी
या नजारे कुछ रूहानी लिख दू।
हुए है काफी रोज आराम दिए कलम को
सोच रहा फिर कुछ खुद जुबानी लिख दू।

-- आनंद सगवालिया

Monday, 28 May 2018

बेशर्म मोहब्बत के अब भी कुछ जख्म मिटाना बाकी है
कुछ दर्द भुला चुका हूं मैं कुछ और मिटाना बाकी हैं।

कतरा कतरा यादों का रग रग से मिटाना बाकी हैं
सांसों से उसकी खुशबू का कुछ अंश मिटाना बाकी हैं।

पा चुका हूं चैन अभी फिर भी बेचैनी मिटाना बाकी हैं
नज़रों से उस मृगनयनी की तस्वीर मिटाना बाकी हैं।

दिल के दरिया से जुनून - ए - इश्क अब भी मिटाना बाकी हैं
इश्क की गहराई को इस दिल से मिटाना बाकी हैं।

गुरूर मिटा थोड़ा है कुछ गुरूर मिटाना बाकी हैं
नूर हुआ है कुछ तो कम कुछ नूर मिटाना बाकी हैं।

-- आनंद सगवालिया

Wednesday, 18 April 2018


जब गुनगुनाने लगे लब मेरे
जब डगमगाने लगे पग मेरे
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब जगमगाने लगे अरमान दिल के
जब चमचमाने लगे नैन खिल के
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब नब्ज मेरी हो भारी
जब उमड़ पढ़े मेरी यारी
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब उठे धुआ सांसो का
जब छुटे कारवा आंसू का
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब मोह भंग हो दुनिया से
जब मन तंग हो बगिया से
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब फूल सिमटने लगे हाथों में
जब शब्द लिपटने लगे बातों में
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब तन्हाई का साया हो
जब सुर्ख ये काया हो
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब दर्द भरा हो रातो में
जब मर्ज बढ़ा हो नातो में
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब बनु मुसाफिर यूहीं मैं
जब लगु के काफिर यूं ही मैं
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब कदम कदम पर रंजिश हो
जब मुझ पर न कोई बंदिश हो
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

जब पथ पर न कोई भाई हो
जब नाराज मुझसे लुगाई हो
समझ लेना इश्क तेरा याद आया हैं

---- आनंद सगवालिया

Thursday, 29 March 2018


नब्ज टटोलना आदत तो नहीं मेरी पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
यूं तो अश्क निकलते नहीं नैनो से पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

ख्वाहिश न है यूं तो किसी की पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
रंजिश न है यूं तो जहां में किसी से पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

ग़म से भी न रोता हूं वैसे तो पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
खुशी में न आपा खोता हूं वैसे तो पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

हार मानना फितरत तो नहीं है पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
जीत से कम मंजूर तो नही है कुछ भी पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

रातों को जागना मुश्किल है मेरा पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
दिन के उजाले में सोता तो नहीं पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

गुनगुनाना पसंद नहीं जमाने को मेरा पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
शोर का शौकीन नहीं हूं मै पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

बैठना पसंद हैं मुझे तफ्तीश से पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
चलने का शौक नहीं ज्यादा पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

वादियों को छोड़ना नहीं चाहता मै पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे
नज़रों को मोड़ना नहीं आता है पर
प्यार तेरा मजबूर कर देता है मुझे

आनंद सगवालिया

Tuesday, 20 March 2018


क्यों छद्म हवा सी तू मेरे सामने न आती हैं
क्यों बहते पानी सी तू मेरे ख्वाबों में बह जाती हैं
क्यों बलखाती नागिन सी तू इतना इतराती हैं
क्यों लहराती बेलों सी तू इतना मुख मटकाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं

क्यों समुद्री लहरों सी तू मेरा मन अस्थिर कर जाती हैं
क्यों मधुशाला सी मादकता तू तन में मेरे फैलाती हैं
क्यों सुकून मां की ममता सा तू दिल को दे जाती हैं
क्यों निश्चल गंगा सी तू इतना आनंद बरसाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं

क्यों अश्कों जैसी तू निर्मल नयन कर जाती हैं
क्यों पत्थर जैसी तू यह सख्ती मुझे दिखाती हैं
क्यों सूरज सी गर्म तू गुस्से में मुझपर हो जाती हैं
क्यों बर्फ सी ठंडक तू लिपट मुझसे पहुंचाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं

क्यों मेहरबानी रब सी तू मुझ पर दिखलाती हैं
क्यों सांसों सी तू नरम हवा मुझ पर यूं उड़ाती हैं
क्यों बेरुखी पतझड़ सी तू कभी कभी हो जाती हैं
क्यों इन्द्रधनुष सी तू मुझ पर रंग कई उड़ेल जाती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं

क्यों अधजल गागर सी तू रूप तेरा छलकाती हैं
क्यों सरपट घोड़े सी तू दूर मुझसे भाग जाती हैं
क्यों बनकर बूंद बारिश सी तू मुझे यूं भिगाती हैं
क्यों सियाह रात सी तू केवल स्वप्न बनकर आती हैं
शायद इसीलिए तू मेरी हमसफ़र कहलाती हैं

---- आनंद सगवालिया

Monday, 12 February 2018

तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
हाँ संग तेरे मुझे लेजा हो माहिया
तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
किया क्या हमने ऐसा गुनाह जो वक्त दे रहा हैं यूँ हमको सजा
हो आजा न हाँ तू आजा
तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
सितम ये केसा हैं तू बता मुझे
प्रीत के बदले बोल क्या दू तुझे
रोता देख मुझे तुझको, क्यों आता हैं हाँ मजा
तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
आँखों की नमी मेरी दिखाती न मेरा गम हैं
एक रात तो क्या रोने को ये जिंदगी भी कम हैं
आज मुझे तू भी तो बता क्या तेरी हैं रजा
हो आजा न हाँ तू आजा
तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
हाँ संग तेरे मुझे लेजा हो माहिया
तू आजा न हाँ आजा न हो माहिया तू आजा न
----आनंद सगवालिया

Sunday, 11 February 2018

हुस्ने वफ़ा ने देखा जो यूँ इतनी इनायत से
दिल को चैन आया हैं इस इबारत से
मदहोश फिजा की आपत्तियां तो देखो
जालिम हवा ने भी हलकी सी शरारत की हैं
परेशां दिल की धड़कनें चिल्ला उठी यूँ
रग-रग ने आज हमसे मुखाफलत की हैं
कोई कह दे की चाहत हैं उनको भी
नासूर इश्क ने जिंदगी से रुखसत की हैं
दिल ने आज देह से अलग होने की जरूरत की ऐसे
शाखों से टूटकर पत्ते गिरे हो जैसे
यूँ बेचेनी सी हो रही हैं दिलोदिमाग में
मै भूल गया हु सब इश्क़ ए शबाब में
नजरें जो बे-हया सी थी आजतक मेरी
शर्मा गई न जाने क्यों इश्क के रुआब में

----आनंद सगवालिया

Wrote after seeing video of PRIYA PRAKASH WARRIER From Movie ORU ADAAR LOVE

Monday, 5 February 2018

पूछा मेने आज सखा से मिला मुझे जो मदिरालय
क्या मिला मद में हो चूर तुझे बता मुझे ओ मतवाले
बोला वो पूछ मत सुख मुझसे तू प्यारे मदपान का
लेकर खुद ही देख सखा क्या मजा है इस रसपान का
मैं बोला मुझे आनंद आता हैं जाकर शिवालय में
मेरा रंग नही जमेगा जाकर किसी मदिरालय में
वो बोला भंग से रंग जमा आकर एक दिन मदिरालय में
भूल जाएगा जो सुख मिला तुझे प्यारे शिवालय में
मैं बोला भक्ति में रस हैं वो हैं कहा मधुपान में
मधुरस से कोई नही झुकेगा यार मेरे सम्मान में
वो बोला भक्ति में चूर हो आज इस रस की मधुपान में
झुक जाएगा शीश तेरा एक प्याले के सम्मान में
मैने एक घूँट पिया कहने से उसके फिर मधुपान का
तब जाके मुझे भान हुआ सुधा अमृत रसपान का
पूछा मेने आज सखा से मिला मुझे जो मदिरालय
क्या मिला मद में हो चूर तुझे बता मुझे ओ मतवाले
बोला वो पूछ मत सुख मुझसे तू प्यारे मदपान का
लेकर खुद ही देख सखा क्या मजा है इस रसपान का

----आनंद सगवालिया

Thursday, 25 January 2018

मै हु भाग्यशाली भारत मेरा भाग्य विधाता
चरणों मे शीश नमन हैं तेरे मेरी प्यारी भारत माता
अमृत का घूँट यहा है नभ पावन जल बरसाता
माँ गंगा की गौद में पुण्य पावन मन हो जाता
हिन्दू मुस्लिम रहते यहां यु जैसे रहते हो दो भ्राता
ये वो भी हैं जिसपर कोई न लांछन आ पाता
भारत माँ की गौद में स्थिरता मन स्वतः पा जाता
प्रकृति की सुंदरता से यहा तन आनंदित हो जाता
लोकतंत्र की बेलियो से भारत का कण कण यु जुड़ जाता
कश्मीर से कन्याकुमारी तक तिरंगा मदमस्त लहराता
मै हु भाग्यशाली भारत मेरा भाग्य विधाता
चरणों मे शीश नमन हैं तेरे मेरी प्यारी भारत माता

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
----आनंद सगवालिया

Sunday, 21 January 2018

जन्मा था वह नीचे घर में लेकर एक अंगड़ाई
लड़कर समाज से उसने की थी अपनी पढाई
कभी सोच न सका कोई लोगो से यु लड़कर
बन जाएगा यह लड़का एक दिन बेरिस्टर
गांधी के आंदोलन में उसने कंधे से कन्धा मिलाया
जंग ऐ आजादी में  कूदकर अंग्रेजो को भगाया
अंग्रेजो से लड़कर जिसने यातना जेल की खायी
जातिवाद के दलदल की बेड़िया उसने मिटाई
छुटपन मे शिकार हुआ जो छुआछूत अपमान का
बड़ा हुआ तो बना वही निर्माता संविधान का
भाग्य लिखकर भारत का बना भीम इतिहास हैं
भारत के निर्माण का आंबेडकर ही शिल्पकार हैं


बाबा साहब अम्बेडकर को समर्पित
----आनंद सगवालिया

Friday, 19 January 2018

राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
रोजगार नही हैं जनता को, पर धर्म की खिचड़ी पका रहा
कोई एक वक्त की रोटी को तरसता, कोई गौ माता के किस्से गा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
कोई मंदिर जा रहा तो, कोई टोपी को अपना बता रहा
रंगों पर भी आज आदमी, अपना हक जता रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
शिक्षा को तरसता कोई तो, कोई विध्यालयो को बाजारू बना रहा
पीने को पानी नही किसी के पास, तो कोई मदिरा को पानी बना रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
रुपये को तरसता कोई, तो कोई करोडो लेकर उड़ जा रहा
फसलो का उचित मूल्य मांगता किसान, कर्ज उद्योगपति का उतारा जा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
सीमा पर शहीद लाखो हो गए, देश उनके नाम पर राजनीती की रोटियां पका रहा
कोई आज भी तरसता आजादी को, कोई आजादी के नायकों को गुनहगार बता रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा
राजनीती के चंगुल में देश मेरा हिलोरे खा रहा

----आनंद सगवालिया

Sunday, 7 January 2018

चलते चलते युही ये सफर एक दिन काट जाएगा
कारवाँ जिंदगी का एक दिन सिमट जाएगा
आज किसी का हैं कल तेरा भी वक्त आएगा
पहले ही सोच लेना जब जाएगा तो खुदा को क्या बतलाएगा
तराना जिंदगी का हँसके गाएगा
या दुखी मन से पछताएगा
कर्म का ही ये खेल है बन्दे
अच्छे किए तो तर जाएगा
नही तो टूट कर बिखर जाएगा
खेल की तरह हे जिंदगी भी
कोई जीतकर जाएगा कोई हारकर जाएगा
ख़ुशी के पल समेटना सुरु कर दो
क्या पता तुम्हारा तार कब कट जाएगा
राह में पत्थर मिलेंगे तो क्या तू कर जाएगा
ठोकर उनसे खाएगा या उनको पार कर जाएगा
चलते चलते युही ये सफर एक दिन काट जाएगा
कारवाँ जिंदगी का एक दिन सिमट जाएगा।।

---- आनंद सगवालिया